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रघुवर दास : राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेंगे या प्रदेश अध्यक्ष, जानिए इस खबर में  

  • Writer: Jay Kumar
    Jay Kumar
  • Dec 25, 2024
  • 3 min read

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TVT NEWS DESK

रांची ( RANCHI ) :   ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास के पद से इस्तीफा देते ही राज्य में सियासी चर्चा खूब जोरों पर है. कोई उन्हें केंद्र में राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने तो कोई प्रदेश में कमान सौंपने की संभावना जता रहे हैं. फिलहाल रघुवर दास के भविष्य को लेकर कोई साफ संदेश ना तो भाजपा ने दिया है और ना ही खुद रघुवर दास ने सार्वजनिक किया है. लेकिन यह तय माना जा रहा है कि पार्टी ने रघुवर दास को कोई बड़ी जिम्मेवारी देने का मन बना चुकी है और इसी दिशा में रघुवर दास के इस्तीफा को देखा जा रहा है.

 


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पार्टी के हर जिम्मेवारी को बखूबी निभाया रघुवर दास ने

रघुवर दास भले ही आरएसएस पृष्टभूमि की नहीं रहे हैं, लेकिन भाजपा के प्रति  वफादारी पर कोई संदेह नहीं उठाया जा सकता. इसके पीछे प्रमुख कारण यह रहा है कि पार्टी ने जब भी कोई जिम्मेवारी दी, रघुवर दास ने सफलता पूर्वक पूरा किया. 1980 में भाजपा के संस्थापक सदस्य के रुप में शामिल होने के बाद रघुवर दास 1995 से 2019 तक जमशेदपुर पूर्वी से विधानसभा सदस्य चुने जाते रहे. झारखंड अलग राज्य बनने के बाद अलग-अलग सरकारों में मंत्री, उपमुख्यमंत्री रहे. 2014 से 2019 तक राज्य के पहले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बने. पांच साल का कार्यकाल पूरा करने का रिकॉर्ड भी इन्हीं के नाम है. 2019 में उन्होंने ना सिर्फ सत्ता गंवा दीं, बल्कि अपनी सीट भी हार गये. कुछ समय तक अलग-थलग पड़ने के बाद पार्टी ने उनको राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी देकर उनकी अहमियत पर मुहर लगा दी. फिर अक्टूबर 2023 में उन्हें ओडिशा का राज्यपाल बना दिया गया. लेकिन 24 दिसंबर 2024 को हुए घटनाक्रम ने एक बार फिर उन्हें चर्चा के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया है.



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आदिवासी नेताओं की विफलता के बाद रघुवर से उम्मीद

2019 में लीडरशीप विवाद के बाद पार्टी ने रघुवर दास को साइड लाइन कर बाबूलाल मरांडी को दुबारा पार्टी में वापसी कराई, लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद बाबूलाल के नेतृत्व पर सवाल उठाने लगे हैं. तो दूसरी तरफ पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा की जमीन भी सिमट चुकी है, लोकसभा में खुद हार गए और विधानसभा चुनाव में पत्नी को भी नहीं जिता पाएं, दूसरी तरफ झामुमो से भाजपा में शामिल पूर्व सीएम चंपई सोरेन से भी पार्टी को बड़ी उम्मीद थी, लेकिन उनका भी रंग फीका पड़ गया. जिसके बाद पार्टी ने फिर से रघुवर दास को नेतृत्व में पार्टी को बागडोर दे सकती है. इसके पीछे राजनीतिक और समाजिक कारण है, हेमंत सोरेन ने आदिवासी और मुस्लिम को एक तरह से मजबूत किला बना लिया है, उसकी काट भाजपा के पास ओबीसी वर्ग ही एकमात्र तीर बचता है. इसमें रघुवर दास सबसे अधिक मजबूत दावेदार हैं. उनके पास पार्टी से लेकर सरकार चलाने तक लंबा अनुभव भी है.

राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए भी मजबूत दावेदार

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव भी जनवरी में होने वाला है. वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल पहले ही खत्म हो चुका है और उन्हें विधानसभा चुनावों के कारण ही विस्तार दिया गया था. रघुवर दास को राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेवारी मिलें, तो कोई बड़ा आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए, क्योंकि राज्यपाल बनाएं जाने से पहले वे पार्टी में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर ही थे, देश में जिस तरह ओबीसी की राजनीति गर्म है उसमें एक ओबीसी वर्ग से राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने पर भाजपा को लाभ मिल सकता है. दूसरी तरफ प्रदेश में भी पार्टी का अध्यक्ष फरवरी में बनाने की पहले ही घोषणा हो चुकी है, माना जा रहा है कि बाबूलाल विपक्ष के नेता बनाएं जा सकते हैं और पार्टी की कमान रघुवर दास को मिल सकती है.  

 

 

 

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